बिहार के सुपौल में मिथिलांचल में एक कहावत कही जाती है, पग-पग पोखर, माछ-मखान। मानें कि यहां तालाब, मछलियां और मखाना बहुतायत में होता है। माछ और मखान के रूप में मिथिला की अपनी एक अलग पहचान रही है। यहां की उत्पादित मछली और मखाना की प्रशंसा देश-दुनिया में की जाती है। हालांकि, कालांतर में इसमें थोड़ी बहुत कमी आई, बावजूद यहां के लोग इन दोनों के उत्पादन में हमेशा से जुड़े रहे लेकिन अब बिहार सरकार की अति महत्वपूर्ण योजना जल जीवन हरियाली से इसपर चार चांद लग रहे हैं। बिहार सरकार ने मछली और मखाना के उत्पादन पर जोर दिया है, तो एक बार फिर इलाके के लोगों का रुझान इस ओर बढ़ा है। सरकार के उठाए गए कदम से इलाके की खोई पहचान एक बार फिर वापस होने की संभावना बढ़ चली है। ऐसा बिहार सरकार की जल-जीवन और हरियाली योजना से संभव हो पाया है।
दरअसल, सरकार ने पर्यावरण को बचाने व रोजगार सृजन करने के उद्देश्य से चार वर्ष पूर्व जल-जीवन-हरियाली योजना की शुरुआत की। उद्देश्य था कि पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ लोगों को रोजगार भी मिल सके। योजना की सफलता को ले व्यापक पैमाने पर प्रचार-प्रसार के साथ-साथ विभागों की भी जिम्मेदारी तय की गई। खासकर मनरेगा जैसी योजनाओं के माध्यम से तालाब निर्माण पर जोर दिया गया। गत वर्ष जिले में 34 नये तालाबों के निर्माण के साथ-साथ कई अन्य मृतप्राय तालाबों का जीर्णोद्धार संभव हो पाया। निर्माण कार्य पूर्ण हो चुके तालाबों में मछली पालन के साथ-साथ मखाना उत्पादन का कार्य आज लोग जोर-शोर से कर रहे हैं।वैसे तो यह इलाका तालाब मामले में हमेशा से समृद्ध रहा है।
यहां तालाबों की धार्मिक मान्यता भी है लेकिन हाल के दिनों में सरकारी योजनाओं का असर और फिर लोगों के बीच फैलाए गए जागरूकता का प्रभाव है यहां के लोगों का रु झान पोखर निर्माण की ओर बढ़ा दिया है। गत वित्तीय वर्ष जिले में 34 नए पोखरों का निर्माण संभव हो पाया है साथ ही कई पोखर का निर्माण कार्य प्रगति पर है। इसके अलावा दर्जनों पोखरों का जीर्णोद्धार कार्य भी पूर्ण किया गया है। पोखरों में फिलहाल मछली पालन या फिर मछली व मखाना उत्पादन का कार्य साथ-साथ चल रहा है। चालू वित्तीय वर्ष में जिले में 50 नये पोखर निर्माण का लक्ष्य रखा गया है। यदि सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो आने वाले दिनों में एक बार फिर कोसी का यह इलाका मछली और मखाना उत्पादन में परचम लहराएगा।
सुपौल जिला कोसी प्रभावित इलाका होने के कारण यहां से कई एकड़ ऐसी जमीन है जिसमें सालों भर पानी लगा रहता है। जिसके कारण ऐसे खेतों में कृषि कार्य संभव नहीं हो पाता है। ऐसे जमीन का उपयोग लोग अब मछली पालन व मखाना उत्पादन में करने लगे हैं। इसके अलावा कोसी से बाहर बसे इलाके के लोग में भी पोखर निर्माण को ले उत्सुकता बढ़ी है। कृषि प्रधान जिला होने के कारण यहां के लोग कृषि कार्य के साथ-साथ अपनी आय को बढ़ाने के लिए मछली पालन के कार्यों से जुड़ने लगे हैं। ऐसे कई लोग स्वयं के बूते भी पोखर निर्माण कर मछली पालन का कार्य कर रहे हैं। इधर सरकार की योजना भी इन्हें सहायता प्रदान कर रही है। मनरेगा से पोखर निर्माण के साथ-साथ मत्स्य विभाग द्वारा इन्हें अनुदान भी दिया जा रहा है। जिसके कारण मछली पालन का कार्य यहां तेजी से फल-फूल रहा है।
पुराने समय से ही यहां के लोग मछली खाने के आदी रहे। हाल के दिनों में इसकी संख्या बढ़ती ही गई है, जिसके कारण मछली उत्पादक किसानों को बाजार की कोई समस्या नहीं रहती है। मछली की कीमत भी उन्हें अच्छी खासी मिल जाती है। जिससे इन व्यवसाय से जुड़े लोगों को अच्छी खासी आमदनी हो जाती है। खासकर इस इलाके में उत्पादित मछली स्वाद में भी बेहतर मानी जाती है। सरकार ने मखाना खेती को बढ़ावा देने के लिए हाल के दिनों में कई सुविधा किसानों को दे रखी है। आर्थिक मदद के साथ-साथ उन्हें प्रशिक्षण भी दिया जाता है। भोला प्रसाद शास्त्नी कृषि महाविद्यालय पूर्णिया के विशेषज्ञों द्वारा यहां कई बार प्रशिक्षण भी दिया जा चुका है। जिसके कारण लोगों में मखाना उत्पादन करने की ललक जगी है। मखाना और मछली का उत्पादन एक साथ होने के कारण किसानों को अच्छा-खासा लाभ होता है।