जब बाढ़ आती है, तो बिहार के पश्चिमी चंपारण तटबंध और गोपालगंज मुख्य पथ पर उनके द्वारा बनाए गए तंबू में रहते हैं और बाढ़ जाने के साथ अपने घरों को वापस चले जाते हैं लेकिन तंबू को वहीं सही सलामत छोड़कर ताकि बाढ़ आने पर पुन: यहां शरण लिया जा सके। यह हाल है नौतन प्रखंड के जुड़े दियारा क्षेत्न के करीब तीन हजार लोगों का है। जहां गंडक नदी में जलस्तर बढऩे से आई बाढ़ से उनके घरों में पानी घुस जाता है। तीन से चार फीट पानी आ जाने के बाद उन्हें घर छोडऩा पड़ता है और वे चंपारण तटबंध और बेतिया-गोपालगज मुख्य मार्ग पर तंबू तानकर रहते हैं। फिर पानी घटने पर अपने घरों को वापस हो जाते हैं लेकिन इस बार समय से पहले ही मानसून के आगमन और कई दिनों तक हुई बारिश उनकी समस्या और अधिक बढ़ा दी। इस बार उनके चंपारण तटबंध पर रहने का समय और अधिक बढ़ जाएगा। बाढ़ और बरसात के दिनों में इस क्षेत्न के बाढ़ पीड़ितों का समय दो जगहों पर कट रहा है। कभी अपने घर को देखते हैं, तो कभी तटबंध पर लगाए गए अपने तंबू को। इनकी संख्या करीब तीन हजार है।
बाढ़ पीडित शंभू पासवान, शंकर पासवान, प्रमोद पासवान, अमरजीत यादव, बेचू चौधरी, नकछेद यादव, बागेश्वर मांझी, भुटेली मांझी, वशिष्ठ मांझी आदि की माने, तो बरसात का समय आते ही सभी निचले हिस्से में रहने वाले लोग सतर्क हो जाते है। जब बारिश लगातार होने लगती है तथा गंडक बराज से भारी मात्ना मे पानी छोडा जाता है तो सभी लोग तटबंध की तरफ चले जाते है। करीब तीन हजार आबादी वाले शिवराजपुर छरकी, भगवानपुर, बिसम्भरपुर आदि गावों के लोग पूरे बरसात चंपारण तटबंध पर तंबू तान कर रहते है।
बाढ़ पीड़ित संतोष मांझी, सुखाडी मांझी, शंभू पासवान, शंकर पासवान, प्रमोद पासवान, अमरजीत यादव, बेचू चौधरी ने बताया कि बांध पर अस्थायी रूप से रहने से उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। सबसे बड़ी समस्या रोशनी और खाना बनाने की होती है। बारिश में सूखी लकड़ी नहीं होने से जैसे तैसे भोजन बनाते हैं। बांध पर सांप, बिच्छू आदि से डर भी बरकरार रहता है।